
इतिहास में बहुत से पुरुष योद्धा हुए और बहुत सी महिला योद्धा, भारतीय इतिहास इतना गहरा दबा हुआ है जहाँ तक हम शायद ही पहुँच पायें, हमारे देश का इतिहास वीरों और योद्धाओं की गाथाओं से भरा पड़ा है, हमारी कोशिश यही रहती है कि हम आपको इतिहास के दबे पन्नों से हर एक दबे योद्धाओं से रूबरू करवायें, आज के आर्टिकल में हम बात करेंगे माई भाग कौर (Mai Bhago Kaur) की. जो कि गुरु गोविन्द सिंह जी के साथ लड़ी और उनके अंतिम समय तक उनके साथ रहने, और बलिदान के लिए जानी जाती है.

माई भागो का प्रारंभिक जीवन (Mai Bhago’s early life)
माई भागो (Mai Bhago) का जन्म पंजाब के वर्तमान तरनतारन जिले में उनके परिवार के पैतृक गांव झबल कलां में हुआ था। माई भागो (Mai Bhago) जन्म से ही कट्टर सिख थीं और उनका पालन पोषण एक कट्टर सिख परिवार में हुआ था। MyHighInfo की रिपोर्ट के अनुसार माई भागो (Mai Bhago) के पिता, मालो शाह, को गुरु हरगोबिंद की सेना में दाखिला लिया गया था और उनके पिता की तरह माई भागो (Mai Bhago) ने शस्त्र विद्या (हथियारों का प्रशिक्षण) सीखा। माई भागो (Mai Bhago) भाई पेरो शाह की पोती थीं, जो प्रसिद्ध भाई लंगाह के 84 भाईयों में से छोटे भाई थे, जो पांचवें भारतीय गुरु , गुरु अर्जन देव (1563-1606) के समय में सिख धर्म में परिवर्तित हो गए थे। उनके दो भाई दिलबाग सिंह और भाग सिंह थे। जब वह छोटी थी तो उसके माता-पिता उसे गुरु गोबिंद सिंह के दर्शन (दर्शन) करने के लिए आनंदपुर साहिब ले गए थे। उसने पट्टी के भाई निधन सिंह से शादी की।
जब माई भाग (Mai Bhago) कौर बहुत छोटी थीं, तो उनके माता पिता उन्हें गुरु गोबिंद सिंह के दर्शन के लिए ले गए थे. उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि चंद ही सालों बाद वो गुरु गोबिंद सिंह के जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाली हैं.
गुरु के साथ रहने वाली माई भागो कौर (Mai Bhago Kaur living with Guru)

माई भागो (Mai Bhago) तलवंडी साबो में गुरु गोबिंद सिंह के साथ रहे । हो सकता है कि उसने निहंग का वेश अपनाया हो । माई भागो इतनी आध्यात्मिक रूप से लीन हो गईं कि, MyHighInfo के लिखित लेख के अनुसार प्रसिद्ध ऐतिहासिक पाठ सूरज प्रकाश के अनुसार , वह समाधि में लीन हो जाएंगी ; उनके अनुभव इतने गहरे थे कि उन्होंने एक साधवी के रूप में जीवन जीना शुरू कर दिया । गुरु ने हालांकि उसे एक छोटी पगड़ी, कचेरा पहनने और खुद को एक कंबल में लपेटने के साथ-साथ सांसारिक तरीकों से लौटने और मर्यादा (आचार संहिता) में चलने का आदेश दिया । जब गुरु हजूर साहिब के पास गए तो वह गुरु के दस अन्य अंगरक्षकों में से एक बन गईं, जिन्होंने खुद को एक बड़ा भाला (लगभग 102 पाउंड वजन) और बंदूक के साथ हथियारबंद किया और पुरुष पोशाक में ऐसा किया।
जनवाड़ा में माई भाग कौर (Mai Bhag Kaur in Janwada)
1708 में नांदेड़ में गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु के बाद, माई भाग कौर (Mai Bhago) आगे दक्षिण में सेवानिवृत्त हो गईं। वह कर्नाटक के बीदर से 11 किमी दूर जनवाड़ा में बस गईं, उन्होंने अपना डेरा स्थापित किया जहां वह ध्यान में डूबी हुई थीं और गुरमत (गुरु का रास्ता) को लंबा जीवन जीना सिखाया । जनवाड़ा में उनकी झोपड़ी को अब पूजा और शिक्षा के स्थान, गुरुद्वारा तप अस्थान माई भागो (Mai Bhago) में बदल दिया गया है । नांदेड़ में भी, तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब के परिसर के भीतर उनके पूर्व निवास की जगह को चिह्नित करने वाले एक हॉल को बुंगा माई भागो (Mai Bhago) के नाम से जाना जाता है।
40 सीखो ने गुरु गोबिंद सिंह से कहा की वो सिख नहीं है (40 Sikhs told Guru Gobind Singh that he is not a Sikh)
बात है 1704 दिसम्बर की. मुगल कोशिश में लगे हुए थे कि किसी तरह गुरु गोबिंद सिंह को पकड़ लिया जाए. वजीर खान के नेतृत्व में मुग़ल सेना निकली, और लाहौर के साथ कश्मीर से भी सैनिक बुलाए गए. आस पास के छुटपुट राजाओं ने भी उनका साथ दिया. आनंदपुर साहिब में मौजूद थे गुरु गोबिंद सिंह. आनंदपुर फोर्ट को घेर लिया गया. धमकी दी गई कि उसे घेर कर खाने-पीने की सप्लाई काट दी जाएगी. गुरु गोबिंद सिंह बाहर नहीं आए. ये तजवीज की गई कि जो भी सिख ये कह दे कि वो गुरु गोबिंद सिंह सिख नहीं है, उसे छोड़ दिया जाएगा. तकरीबन चालीस सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह को कहा कि अब वो उनके सिख नहीं हैं. इनके लीडर थे महान सिंह बरार. गुरु गोबिंद सिंह ने कहा, एक कागज़ लो, उस पर लिखो ‘हम अब आपके सिख नहीं हैं’. चालीसों ने उस पर अपना नाम लिखा. और दे दिया. और वहां से निकल गए.
माई भागो (Mai Bhago) को पता चला कि चालीस सिख गुरु गोबिंद सिंह को छोड़ कर चले गए हैं. ये बात उन्हें चुभ गई. उन्होंने कमर कसी, और निकल पड़ीं. उन सिखों को खरी खोटी सुनाई. उनके शौर्य की याद दिलाई. गुरु गोबिंद सिंह को इस हालत में छोड़ कर जिस तरह वो वापस लौट आए थे, उसपर उनकी लानत मलामत की. माई भागो के ये शब्द सुन कर उनकी आंखें खुल गईं. वो अपने किए पे शर्मिंदा हो गए. उनको और कुछ और सिखों को साथ लेकर माई भागो मालवा की तरफ निकल गईं, जहां गुरु थे.
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इस बीच औरंगजेब ने कुरआन पर शपथ लिखकर भेजी. उस पर सभी नेताओं के साइन कराए. शपथ में लिखा था कि गुरु गोबिंद सिंह बाहर आ जाएं तो इज्जत के साथ शान्ति की बात की जाएगी.
गुरु गोबिंद सिंह को उनपर भरोसा नहीं था. फिर भी वो बाहर निकले. मुगलों ने पीछा करना शुरू किया. चमकौर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह और उनके साथ के सिख रुके. गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे बेटे अपनी दादी माता गुजरी (माता गुजर कौर) के साथ निकल चुके थे. नाम थे जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह. गुरु के दोनों बड़े बेटे उनके साथ ही थे. चमकौर में गुरु के रुकने की खबर सुनकर उन पर मुगलों ने हमला कर दिया. इसमें पंज प्यारों ने जोर डाल कर कहा कि गुरु वहां से निकल जाएं. इस लड़ाई में गुरु के दोनों बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह खेत रहे.
यहां से गुरु गोबिंद सिंह निकले, तो किदराना पहुंचे. यहीं हुई मुक्तसर की लड़ाई. लेकिन इस लड़ाई में कुछ अलग था. जब तक गुरु वहां पहुंचते, अपने चालीस सिखों के साथ वहां पहुंच चुकी थीं सिख इतिहास की पहली महिला योद्धा. उनके तलवार के पहले झटके से पहले ही इतिहास अपने-आप को लिख चुका था. अब केवल उस लड़ाई को निहार रहा था.
जिस लड़ाई में सेनापति थीं माई भागो. (Mai Bhago in the battle in which the general was the commander.)
गुरु गोबिंद सिंह के पीछे आती दस हजारी मुग़ल सेना को वहीं तालाब के पास रोक लिया. वहीं दूर एक ऊंची चट्टान से गुरु गोबिंद सिंह और उनके साथ के सिख तीर बरसा रहे थे. मुगलों की सेना को किसी तरह पीछे हटाया, लेकिन माई भागो (Mai Bhago) के साथ के सभी सिख खेत रहे. कहा जाता है कि महान सिंह बरार ने गुरु गोबिंद सिंह की गोद में आखिरी सांस ली. इन चालीस सिखों को ही चाली मुक्ते (चालीस आज़ाद सिख) की पदवी से नवाज़ा गुरु गोबिंद सिंह ने.
पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए बहुत बहुत सुक्रिया हम आशा करते है कि आज के आर्टिकल माई भागो (Mai Bhago) से आपको जरूर कुछ सीखने को मिला होगा, अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया है तो तो इसे शेयर करना ना भूले और ऐसे ही अपना प्यार और सपोर्ट बनाये रखे THEHALFWORLD वेबसाइट के साथ चलिए मिलते है नेक्स्ट आर्टिकल में तब तक के लिए अलविदा, धन्यवाद !
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